Illumination Calculation & Lighting Design

इल्युमिनेशन कैलकुलेशन और लाइटिंग डिजाइन:

 एक अच्छी  लाइटिंग डिजाइन सिर्फ किसी जगह को रोशन करने से कही ज्यादा यह विजुअल कम्फर्ट, सुरक्षा और ऊर्जा दक्षता का एक पूरा विज्ञान है। चाहे वह एक ऑफिस हो क्लासरूम हो अस्पताल का ऑपरेशन थिएटर हो या कोई सड़क हर जगह एक खास मानक के अनुसार रोशनी (Illumination) की जरूरत होती है। 
इस पोस्ट में हम इल्युमिनेशन कैलकुलेशन और लाइटिंग डिजाइन के प्रेक्टिकल पहलुओं फार्मूलों और तरीकों को विस्तार से समझेंगे। 

illumination Calculation & Lighting Design
Illumination Calculation & Lighting Design 

इल्युमिनेशन कैलकुलेशन की जरूरत क्यों? 

किसी भी जगह के लिए लाइटिंग सिस्टम डिजाइन करने से पहले यह कैलकुलेटर करना जरूरी है कि वहां कितनी रोशनी (Lux Level) की जरूरत है। इसकी गणना करने के निम्न कारण है। 

ऊर्जा दक्षता (Energy-Efficiency): जरूरत से ज्यादा लाइट्स लगाने से बिजली की बर्बादी होती है। सही कैलकुलेशन से हम ऊर्जा की बचत कर सकते है। 
लागत को बेहतर बनाता (Cost Optimization): जरूरी ल्यूमेन्स के आधार पर ही लैंप/ल्यूमिनेयर्स की सही संख्या और पावर का चुनाव होता है जिससे शुरुआती और ऑपरेशनल दोनों लगते कम होती है। 
विजुअल कम्फर्ट और सुरक्षा (Visual Comfort and Safety): पर्याप्त और एक समान (Uniform) रोशनी आंखों पर जोर नहीं डालती  जिससे कम करना आसान होता है और दुर्घटनाओं का खतरा कम हो जाता है। 
मानकों का पालन (Compliance With Standard): हर तरह के काम और जगह के लिए कुछ तय इल्युमिनेशन स्तर (Lux Levels) होते है। जिनका पालन करना जरूरी है। 

इल्युमिनेशन के मूल नियम (Laws of Illumination): 

इन्वर्स स्क्वायर लॉ (Inverse Square Law): इस नियम के अनुसार किसी पॉइंट लाइट सोर्स से एक सतह पर पड़ने वाली रोशनी (E) लाइट सोर्स से सतह की दूरी (d) के वर्ग (Square) के व्युत्क्रमानुपाती  (inversely Proportional) होती है। 
फॉर्मूला E = I / ²
जहां: 
E = इल्युमिनेशन (Lux) 
I = ल्यूमिनस इंटेंसिटी (Candela) 
d =  दूरी (मीटर) 

लैम्बर्ट्स कोसाइन लॉ (Lamberts Cosine Law):

 यह नियम बताता है कि अगर लाइट की किरणे सतह पर लंबवत (normal) के बजाय किसी एंगल पर पड़ती है तो रोशनी उस एंगल के कोसाइन के अनुपात में कम हो जाती है। 
फॉर्मूला: E = (I costθ) / ²
इन दोनों नियमों को मिलाकर हमें पॉइंट सोर्स के लिए मुख्य फॉर्मूला मिलता है। 
मुख्य इल्युमिनेशन फॉर्मूला: 
E = Φ / A 
E = इल्युमिनेशन (Lux) 
 Φ =  ल्यूमिनस फ्लक्स (Lumen) लाइट का लुक आउटपुट 
A = एरिया (वर्ग मीटर ²)
उदाहरण: 40,000 ल्यूमेन्स का कुल फ्लक्स 100 ² के कमरे में औसत इल्युमिनेशन E = 40000/100 = 400 Lux देगा। 
पॉइंट सोर्स के लिए फॉर्मूला (For Point Source): E = l costθ / ²
l = ल्यूमिनस इंटेंसिटी (Candela) 
costθ = लाइट रेंज और सतह के लंबवत के बीच का एंगल 
d = दूरी 

इल्युमिनेशन को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Illumination): 

दूरी (Distance): इन्वर्स स्क्वायर के अनुसार दूरी बढ़ने पर रोशनी तेजी से घटती है। 
आपतन कोण (Angle of incidence): जैसे-जैसे एंगल θ बढ़ता है costθ का मान घटता है। 
जिससे रोशनी कम हो जाती है। 
सतह की परावर्तकता (Reflectance of Surface): हल्के रंग की सतहें ज्यादा लाइट रिफ्लेक्टर करती है। जबकि गहरे रंग की सतहें लाइट को सोख लेती है। इसलिए दीवारों और छत का रंग और फिनिश जरूरी होता है। 

रखरखाव और उपयोगिता कारक ( Maintenance & Utilization Factor): 

यूटिलाइजेशन फैक्टर (UF): ल्यूमिनेयर से निकलने वाला कितना फ्लक्स असल में काम की जगह पर पहुंचता है। यह कमरे के आकर और ल्यूमिनेयर के प्रकार पर निर्भर करता है। 

मेंटेनेंस फैक्टर (MF): समय के साथ ल्यूमिनेयर पर धूल जमने लैंप के आउटपुट में कमी आदि के कारण इल्यूमिनेशन लेवल कम हो जाता है। MF इस कमी को ध्यान में रखता है। यह आम तौर पर 0.7 से 0.9 के बीच में होता है। 

लाइटिंग डिजाइन के मुख्य तरीके (Key Lighting Desing Methods):

ल्यूमेन मेथड (Lumen Method):

यह औसत इल्युमिनेशन लेवल कैलकुलेट करने का सबसे आम तरीका है। इसका इस्तेमाल ज्यादातर इनडोर लाइटिंग के लिए किया जाता है। फॉर्मूला: N = (E × A) / (Φ × UF × MF) 
जहां: N = ल्यूमिनेयर्स (लाइट फिटिंग) की संख्या
E = जरूरी इल्युमिनेशन लेवल (Lux)
A =एरिया ( M ²) 
Φ = हर लैंप का ल्यूमिनस फ्लक्स (Lumens) 
UF = यूटिलाइजेशन फैक्टर 
MF = मेंटेनेंस फैक्टर 

वाट प्रति वर्ग मीटर मेथड (Watt per Square Meter Method): 

यह एक आसान तरीका है जिसमें पहले से तय मानकों के आधार पर प्रति वर्ग मीटर कितने वाट की जरूरत है इसका अनुमान लगाया जाता है। 
उदाहरण: ऑफिस के लिए 15 Watt/² यह बहुत सटीक नहीं है लेकिन शुरुआती योजना के लिए फायदेमंद है। 

पॉइंट टू पॉइंट मेथड (Point to Point Method):

 इस तरीके का इस्तेमाल तब किया जाता है  जब हमें किसी खास पॉइंट (जैसे किसी मशीन के ऊपर) पर इल्यूमिनेशन लेवल कैलकुलेट करना होता है। यह तरीका इन्वर्स स्क्वेयर लॉ और कोसाइन लॉ पर आधारित है। 
उदाहरण: एक 20 मीटर लंबे और 15 मीटर चौड़े क्लासरूम में 300 लक्स की औसत इल्यूमिनेशन डिजाइन करना है। हर LED ल्यूमिनेयर आउटपुट 5000 ल्यूमेन्स है। यूटिलाइजेशन फैक्टर (UF) 0.5 और मेंटेनेंस फैक्टर (MF) 0.8 है अब बताओ कि कितने ल्यूमिनियरो की जरूरत होगा। 
हल - कमरे का क्षेत्रफल (A) = लम्बाई × चौड़ाई = 20m × 15m = 300m ²
जरूरी इल्यूमिनेशन (E)  = 300 लक्स 
हर ल्यूमिनेयर का फ्लक्स (Φ) = 5000 ल्यूमेन्स
यूटिलाइजेशन फैक्टर (UF) = 0.5 
मेंटेनेंस फैक्टर (MF) = 0.8
ल्यूमेन मैथड का फॉर्मूला में मान रखने पे 
N = (E × A) / (Φ × UF × MF) 

N = (300 × 300) / (5000 × 0.5 × 0.8) 
N = 90000 / 2000
N = 45 

क्लासरूम में 45 LED ल्यूमिनेयर लगाने की जरूरत होगा। 




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