इलेक्ट्रिक ब्रेकिंग क्या हैं | Electric Breaking in Hindi

Electric Breaking:- 

इलेक्ट्रिक ट्रैक्शन सिस्टम में गतिज अवस्था में चल रही गाड़ी को रोकने के लिए अचानक ब्रेक लगाने पर उत्पन्न होने वाली ऊर्जा को कम समय में समाप्त करने की आवश्यकता होती है। क्योंकि ब्रेकिंग में असफलता से खतरा हो सकता है इस लिए ब्रेकिंग सिस्टम को अधिक महत्व दिया जाता हैं। 

Electric Breaking
Electric Breaking

ब्रेकिंग सिस्टम की आवश्यकता:- 

ब्रेकिंग सिस्टम की निम्न विशेषताएं होती हैं। 

  • ब्रेकिंग सिस्टम सरल होना चाहिए जिससे चालक आसानी से प्रयोग कर सके। 
  • ब्रेकिंग सिस्टम में रख रखाव कम हो तथा सिस्टम विश्वसनीय होना भी आवश्यक है। 
  • सभी डिब्बों में ब्रेक एक साथ होना चहिए।
  • ब्रेकिंग का समय कम होना चाहिए। 
  • ब्रेक का यूज करने पर यात्रियों को झटका रहित हो। 
  • आपातकालीन स्थिति में अचानक ब्रेक लगाने पर एक नियमित और सुरक्षित दूरी पर रुकना चाहिए। 
  • ब्रेकिंग सिस्टम ऐसा होना चाहिए कि बिना समय नष्ट किए अनेक बार यूज किया जा सके। 
  • ब्रेकिंग समय में एकत्र ऊर्जा इलेक्ट्रिक ऊर्जा में पुनः गाड़ी तेज करने में उपयोग होने का प्रबन्ध होना चाहिए। 

ब्रेकिंग सिस्टम:- 

ब्रेकिंग सिस्टम को तीन भागों में बांटा गया हैं। 

  1. मैकेनिकल ब्रेकिंग
  2. इलेक्ट्रिक ब्रेकिंग
  3. हाइड्रोलिक ब्रेकिंग

हम इस लेख में इलेक्ट्रिक ब्रेकिंग को जानेंगे। 

इलेक्ट्रिक ट्रैक्शन सिस्टम में ब्रेकिंग सिस्टम :- 

  • प्लगिंग
  • रिहोस्टेटिक ब्रेकिंग
  • रिजनरेटिव ब्रेकिंग
  • इलेक्ट्रोमैग्नेटिक ब्रेकिंग
  • एडी Current ब्रेकिंग
इन पांच ब्रेकिंग सिस्टम में केवल (1,2,3) का यूज अधिक होता हैं। जबकि कही कही एडी Current ब्रेकिंग का यूज किया जाता हैं। 

प्लगिंग :- 

इस विधि को रिवर्स करेंट ब्रेकिंग सिस्टम भी कहा जाता हैं। इस विधि में मोटर की सप्लाई को इस प्रकार कनेक्ट किया जाता हैं। की ब्रेकिंग के समय मोटर में उत्पन्न टॉर्क की दिशा रोटर के घूमने की दिशा विपरीत होती हैं। तथा मोटर की स्पीड धीरे - धीरे कम होने लगती हैं। जब मोटर की स्पीड जीरो हो जाती हैं। तब रोटर पहले से विपरित दिशा में घूमना स्टार्ट कर देता हैं मोटर की स्पीड जीरो होने पर मोटर का कनेक्शन सप्लाई से कट जाता हैं। जिसके कारण गतिज ऊर्जा लॉस होती हैं। व मोटर में विपरित दिशा में टर्म उत्पन्न करने के लिए अधिक गतिज ऊर्जा की आवश्कता होती हैं। 
जिसके कारण सिस्टम की दक्षता कम हो जाती हैं। गतिज ऊर्जा अधिक लॉस होती हैं तथा सप्लाई के अचानक फेल हो जाने पर यह विधि काम में नहीं आती हैं। 

रिहोस्टेटिक ब्रेकिंग :- 

रिहोस्टेटिक ब्रेकिंग को Dynamic ब्रेकिंग सिस्टम भी करते है। 

D.C शन्ट मोटर में रिहोस्टेटिक ब्रेकिंग सिस्टम :- 

D.C शन्ट मोटर में ब्रेकिंग के टाईम आर्मेचर का सम्बन्ध सप्लाई से काट करने के बाद प्रतिरोध (R) आर्मेचर के साथ कनेक्ट कर दिया जाता हैं। जिसके कारण मोटर पृथक उत्तेजक (Separately Excited) Generator की तरह कार्य करने लगती हैं। तथा ब्रेकिंग टर्म प्रतिरोध को दी गयी करेंट के कारण उत्पन्न होता है, परन्तु किसी कारण सप्लाई का सम्बन्ध अचानक टूट जाने या फेल हो जाने से ब्रेकिंग रुक जाता है। इस प्रकार के फाल्ट को दूर करने के लिए ब्रेकिंग के समय आर्मेचर  के साथ सीरीज फीड कॉइल का प्रयोग किया जाता हैं। जिससे मोटर स्वयं उत्तेजित (Self Excited) की तरह कार्य करने लगती हैं। 

वर्किंग :- 

इस विधि में मोटर का सम्बन्ध सप्लाई से काट दिया जाता है। तथा मोटर गतिज ऊर्जा व लोड के कारण मोटर स्वतः उत्तेजित (Self Excited) सीरीज जेनरेटर की तरह कार्य करने लगती हैं। मोटर के टर्मिनल के आर-पार (R) लगा होता हैं। जो गतिज ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित होने के पश्चात लॉस हो जाता हैं।  

रिजनरेटिव ब्रेकिंग :- 

रिजनरेटिव ब्रेकिंग सिस्टम में मोटर का कनेक्शन ऑफ नहीं किया जाता हैं बल्कि मोटर को सप्लाई में ही कनेक्ट रहने दिया जाता हैं। व ब्रेकिंग ऊर्जा या गतिज ऊर्जा को पुनः प्रणाली में वापिस भेज दिया जाता हैं। 
D.C शन्ट मोटर में यदि प्रेरित E.M.F का मान लाईन वोल्टेज के मान समान हैं तब मशीन मोटर के रूप में कार्य करेगी तथा प्रेरित E.M.F का मान लाईन वोल्टेज के मान से अधिक हैं, तब मशीन जेनरेटर की तरह कार्य करेगी। 
जब मशीन की स्पीड बढ़ाई जाती हैं तब E.M.F लाईन वोल्टेज के मान से अधिक हो जाता हैं, तथा ऊर्जा व्यय (लॉस) ना हो कर पुनः प्रणाली को वापिस चली जाती हैं, इस लिए मोटर की स्पीड तेजी से घटती हैं, व मोटर विराम अवस्था में आ जाती हैं ऊर्जा लॉस कम होने के कारण इस सिस्टम का उपयोग ट्रैक्शन सिस्टम में अधिक किया जाता हैं।

रिजनरेटिव ब्रेकिंग :- 

रिजनरेटिव ब्रेकिंग यूज करने के लिए आवश्यक शर्ते :- 

जेनरेटर में विरोधी विद्युत वाहक बल का मान सदा सप्लाई वोल्टेज से अधिक होता हैं। तथा वोल्टेज के अन्तर के कारण आर्मेचर करेंट प्रवाहित होती हैं। ब्रेकिंग के समय विरोधी विद्युत वाहक बल का सप्लाई वोल्टेज से अधिक होना आवश्यक होता हैं। 

यदि किसी विशेष परिस्थिति में ब्रेकिंग द्वारा प्राप्त ऊर्जा अत्यधिक होने पर ऐसा प्रबन्ध होना चाहिए जिससे कुछ ऊर्जा लॉस की जा सके। 

सुरक्षा की दृष्टि से विद्युत प्रणाली में यांत्रिक स्थिरता होना चाहिए। 

रिजनरेटिव ब्रेकिंग के लाभ :- 

इस ब्रेकिंग के निम्न लाभ हैं

  • रिजनरेटिव ब्रेकिंग सिस्टम में ब्रेकिंग ऊर्जा विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है। जिसको सप्लाई में वापिस भेज दिया जाता हैं। जिससे ऊर्जा का लॉस कम होता हैं, इस प्रकार परिचालन लॉस काफी हद तक कम हो जाता है। 
  • इस सिस्टम में अधिक ब्रेकिंग बाधा होता हैं। अथवा गाड़ी ब्रेक लगाने के बाद कम दूरी तय करती हैं। इस सिस्टम के यूज से गाड़ी हाई स्पीड से चलाया जा सकता हैं। 
  • इस सिस्टम में ब्रेक कम घिसते हैं
  • इस सिस्टम में गाड़ी चलाना अधिक सुरक्षित हैं। 
रिजनरेटिव ब्रेकिंग के हानि :- 

इस ब्रेकिंग के निम्न हानि हैं 
  • इस सिस्टम में ब्रेकिंग ऊर्जा कंट्रोलिंग तथा ट्रेक्शन सिस्टम की सुरक्षा के लिए अतरिक्त डिवाइस की आवश्कता होती हैं। जिससे काफी महंगा होता हैं। 
  • इस सिस्टम में गाड़ी को जीरो स्पीड प्राप्त नहीं होता अतः यांत्रिक ब्रेक की आवश्यकता होती हैं। 
  • सप्लाई को विद्युत ऊर्जा वापिस भेजने के कारण सबस्टेशन का परिचालन जटिल हो जाता हैं। 

 







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